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संयुक्त राष्ट्र का 2025 के लिए वैश्विक आर्थिक वृद्धि अनुमान

  • savethistime01
  • Jan 10
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संयुक्त राष्ट्र (UN) ने 2025 के लिए वैश्विक आर्थिक वृद्धि का अनुमान 2.8% लगाया है, जो पिछले साल के स्तर के समान है। यह वृद्धि मुख्य रूप से कुछ प्रमुख देशों के आर्थिक सुधारों पर निर्भर करेगी, जिनमें चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारतीय उपमहाद्वीप के देशों का प्रमुख योगदान होगा। हालांकि, वैश्विक अर्थव्यवस्था में कई जोखिम और अनिश्चितताएँ मौजूद हैं, जो इस वृद्धि के अनुमान को प्रभावित कर सकती हैं।


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1. वैश्विक आर्थिक वृद्धि में असमानता


संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक आर्थिक वृद्धि में असमानता देखी जा रही है। विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों में वृद्धि की दर अपेक्षाकृत कम रहने की संभावना है। हालांकि, कुछ उभरते हुए बाजार, जैसे भारत और इंडोनेशिया, मजबूत प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रहे हैं। विकासशील देशों में आर्थिक विकास में सुधार हो सकता है, लेकिन यह मुख्यतः वैश्विक व्यापार में सुधार और स्थानीय नीतियों पर निर्भर करेगा।


2. चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका


चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्थाएँ वैश्विक वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। चीन ने हाल ही में अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कई सुधारात्मक कदम उठाए हैं, जबकि अमेरिका में भी आर्थिक सुधार की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि, दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएँ कुछ संघर्षों का सामना कर सकती हैं, जैसे व्यापार युद्ध और बढ़ती ब्याज दरों के प्रभाव।


3. यूरोप और जापान का आर्थिक दृष्टिकोण


यूरोपीय संघ और जापान में आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है। यूरोपीय संघ को कई आंतरिक मुद्दों का सामना है, जैसे कि ब्रेक्जिट के बाद का प्रभाव और ऊर्जा संकट। वहीं, जापान को भी मुद्रास्फीति और जनसंख्या की गिरावट के कारण चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।


4. वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाएँ


वैश्विक व्यापार में 3.2% की वृद्धि का अनुमान है, लेकिन यह संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार तनावों के कारण जोखिमों से प्रभावित हो सकता है। इस समय वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएँ कुछ अव्यवस्थाओं का सामना कर रही हैं, जो आर्थिक विकास में बाधा डाल सकती हैं।


5. विकसित और विकासशील देशों के बीच असमानता


संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक गरीबी और असमानता के मुद्दे पर भी चिंता जताई है। विकासशील देशों में गरीबी की दर में कमी आने की संभावना है, लेकिन यह बहुत धीमी गति से होगा। वहीं, विकसित देशों में समृद्धि और सामाजिक कल्याण की स्थिति स्थिर रहने की संभावना है।

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